लहरों
से डर कर, नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
शायद ये लाइनें 9 साल के इस मासूम के लिए ही लिखी गई थीं. इस मासूम का नाम
है समीर. समीर गुरुग्राम में रहता है और इसके पिता घर की सजावट में काम आने
वाली छोटी-मोटी चीज़ें बनाते हैं. सड़कों के किनारे अपनी कला को बेच वो
अपने परिवार का घर चलाते हैं. लेकिन समीर के सपने काफ़ी बड़े हैं.
गरीब
बच्चों के लिए चलाए जाने वाले स्कूल में पढ़ने वाले समीर की प्रतिभा इस
कदर रंग लाई कि उसे एक इंग्लिश स्कूल में दाखिला मिल गया. वो भी फ्री.
समीर जिस स्कूल में पढ़ता है वहां के गणित के टीचर को उसकी प्रतिभा पर
पूरा यकीन था. उसके पढ़ने की ललक उसे वहां आने वाले हर बच्चे से अलग करती
थी. इस कारण उन्होंने गुरुग्राम के Alphine Convent School की प्रिंसिपल से
बात की. प्रिंसिपल ने समीर को Interview के लिए बुलाया.अपनी
ज़िंदगी के पहले ही Interview में समीर ने स्कूल की प्रिंसिपल को खुश कर
दिया. समीर की इंग्लिश सुन कर न सिर्फ़ प्रिंसिपल, बल्कि उसे पढ़ाने वाले
गणित के टीचर भी हैरान थे.
समीर के कुल 7 भाई-बहन हैं. वो घर का पहला बच्चा है, जो इंग्लिश स्कूल
में पढ़ने जा रहा है. समीर की पढ़ाई का पूरा खर्च स्कूल का ट्रस्ट उठाएगा.समीर
के लिए उठाया गया ये कदम उन बच्चों के लिए आशा की किरण ले कर आया है,
जिन्हें पढ़ने का मन तो है, लेकिन आर्थिक अभाव के कारण वो अपने इस मासूम
सपने को सिर्फ़ सपना समझ कर भूल जाते हैं.
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